बागी कहने वाले पूर्व दस्यु सरदार मोहर सिंह गुर्जर ने मंगलवार को भिंड जिले में आखिरी सांस ली 60 के दशक में चंबल के सबसे बड़े कुख्यात डकैत मोहर सिंह पर 2 लाख रु. इनामी का हुआ अंतिम अध्याय समाप्त ।।

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मध्यप्रदेश ग्वालियर भिंड के मोहर सिंह डकैत एक जमाना था बीहड़ों में कभी आतंक के पर्याय रहे ददआ ने अपने गाँव महगाओं ज़िला भिंड में ली आख़िरी साँस।

खुद को बागी कहने वाले पूर्व दस्यु सरदार मोहर सिंह गुर्जर ने मंगलवार को भिंड जिले में आखिरी सांस ली 60 के दशक में चंबल के सबसे बड़े कुख्यात डकैत मोहर सिंह पर 2 लाख रुपये का इनाम था फिर भी किसी कि हिम्मत नहीं हुई थी मारने की व पुलिस की मुखबरी करने की जितने भी दिन वीहड़ो में रहे स्वातंत्र रहे। मोहर ​ सिंह के दिलचस्प किस्सों के साथ ही जानें कि 1972 में जेपी के सामने समर्पण करने वाला दस्यु सम्राट कैसे एक दस्यु सुंदरी से प्रभावित था.
एक ज़माना था जब चंबल (Chambal) का बीहड़ मोहर सिंह की बंदूक से गूंजता था, तो थर्राहट दूर दूर तक पहुंचती थी. चंबल में आतंक का पर्याय माने गए अपने समय के सबसे महंगे डकैत मोहर सिंह (Chambal ka Dacoit) की मृत्यु 93 साल की उम्र में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के भिंड ज़िले (Bhind) में हो गई. जानिए ‘दद्दा’ के नाम से मशहूर उस डाकू की कहानी जिसे कभी रॉबिनहुड कहा गया, तो कभी फिल्मी नहीं बल्कि असली गब्बर सिंह (Gabbar Singh).
साल 1972 में मोहर सिंह ने अपने भरे पूरे गैंग यानी 140 डाकुओं के साथ आत्मसमर्पण किया था. जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) और मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी के आह्वान पर मोहर सिंह ने अन्य कुख्यात डाकुओं (Chambal Ke Daku) के साथ हथियार डाले थे. लेकिन इससे पहले वह कथित तौर पर 400 हत्याओं व 650 अपहरणों को अंजाम दे चुका था. उसे आठ साल जेल के बाद रिहा किया गया.
मोहर सिंह पहली बार पुलिस रिकॉर्ड में 1958 में आया, जब वह गांव में एक रंजिश के चलते हत्या करने के बाद बीहड़ों में भाग गया था. उसके बाद 1972 तक वह चंबल के सबसे खतरनाक डाकू के तौर पर आतंक फैलाता रहा. 1970 के दशक में मोहर पर दो लाख और उसके गैंग पर 12 लाख का इनाम पुलिस ने रखा, तो चंबल के कुख्यात गैंगों ने भी मोहर का लोहा माना और वह सबसे महंगा और सबसे खतरनाक डकैत घोषित हुआ। स्थानीय लोगों के मुताबिक मोहर ने कभी औरतों के साथ बदसलूकी न करने की कसम खुद भी खाई थी और अपने गैंग को भी दिलाई थी. साथ ही, खुले आम जेल में मुर्गा और मटन खाने, अदालत में जज के फांसी की सज़ा सुनाने पर जज को टका सा जवाब दे देने, जेल में एक पुलिस अधिकारी को पीटने और पुलिस अधिकारियों को जेल परिसर में भी चुनौती देने जैसे कई किस्से खुद मोहर सिंह के हवाले से सुनाए जाते हैं, जो उसकी दिलेरी और शेखी का बयान भी करते हैं. लेकिन एक ऐसा किस्सा भी है, जहां उसकी शेखी फीकी पड़ गई थी.
जेल से जल्दी रिहा किए जाने के बाद सरकार ने मोहर सिंह को 35 एकड़ ज़मीन भेंट दी. एक किसान के तौर पर उसने बाकी की उम्र गुज़ारते हुए राजनीति में आने की भरसक कोशिशें कीं. बंदूक के आतंक के कारण कभी लोगों पर उसका प्रभाव था, लेकिन बंदूक छूटने के बाद कहां वो असर रहा. महगांव में दो बार पार्षद बने मोहर की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं अधूरी ही रहीं.

सुयश दीक्षित
ब्यूरो प्रमुख न्याय सारथी
ग्वालियर चम्बल सम्भाग

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