उत्तर प्रदेश ललितपुर श्री श्री 108 आदि कवि महर्षि बाल्मीकि जयंती पर नई बस्ती स्थित बाल्मीकि मंदिर पर आज बड़े धूमधाम से बाल्मीकि जयंती मनाई गई एवं भव्य भंडारा किया गयाऔर ।

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उत्तर प्रदेश ललितपुर
श्री श्री 108 आदि कवि महर्षि बाल्मीकि जयंती पर नई बस्ती स्थित बाल्मीकि मंदिर पर आज बड़े धूमधाम से बाल्मीकि जयंती मनाई गई एवं भव्य भंडारा किया गया।


ललितपुर। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर श्री श्री 108 आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी के प्रकोष्ठदिबस के शुभ अवसर पर आदि कवि महर्षि मंदिर पर हवन पूजा अर्चना करते हुए उनके चित्र पर माला आदि अर्पण की गई एवं वैदिक काव्य की देवोपासना के होते हुए भी महर्षि ने पहले पहल मानव- चरित्र को अपने काव्य में प्रधानता दी है। इसीलिए उनके मानवप्रधान महाकाव्य में, मनुष्य की शक्ति के साथ- साथ उसकी असमर्थता और वेदना की फूल-शूलमयी परिस्थितियों को कलात्मकता के साथ चित्रित किया गया है। वाल्मीकि का नैतिक धरातल बहुत ऊंचा है। वह मानव चरित्र के पंडित होते हुए भी आदर्शवादी हैं। मृत्यु के लिए यहां इतना भय नहीं है, इस जीवन में ही मनुष्य की पीड़ा उनके काव्य का परम सत्य है। यहां कविता का जन्म इन्द्र या वरुण की उपासना में नहीं माना गया है, वरन क्रौंच पक्षी के मारे जाने से उसकी संगिनी के आर्तनाद से ऋषि के हृदय में उत्पन्न होने वाले क्रोध और करुणा से माना गया है। शोक: श्लोक त्वमागत: कवि का शोक ही श्लोक बन गया। सर्वत्र कवि के चरित्र श्वेत या श्याम न होकर मानवीय हैं और इसी में सत्य तथा कला के सहज दर्शन हो जाते हैं। देश की आरण्यक त्यागमय संस्कृति वाल्मीकि के एक-एक शब्द में प्रस्फुटित है। राम के वनवास जाने का जब कौशल्याजी को मालूम हुआ तब उन्होंने पूछा कि पिता की आज्ञा तो मिल गई लेकिन मां की भी आज्ञा मिली है? तब राम ने सहज भाव से कहा, हां मिल गई। यानी केकई माँ की। तब माँ कहती हैं- अच्छी बात है- सुखं गच्छ। सुख पूर्वक जाओ। परंतु लक्ष्मण की मां अपने बेटे को हिदायत देतीं हैं कि वन में राम को दशरथ और सीता को माता और जंगल को अयोध्या समझना। आदिकवि भारतीय आत्मा, गरिमा तथा प्रतिभा के महान प्रतिनिधि थे। उन्होंने संघर्षरत मनुष्य की आकांक्षाओं, आशाओं निराशाओं को सजीव वाणी दी। चारित्रयेण च कोयुक्त:? इस भारी प्रश्न का उत्तर ही राम का जीवन है। वाल्मीकि ने राम की व्याख्या करते हुए कहा है रामोविग्रहवान धमर्: अर्थात धर्म का मूर्तिमान रूप राम हैं। आदिकवि चरित्र और धर्म को समान मानते हुए कहते हैं राम सदा रहने वाले धर्म वृक्ष के बीज हैं। और सभी मनुष्य उस वृक्ष के पत्ते और फल हैं। चरित्र के संतुलित एवं बहुमुखी विकास में उनका शरीर और मन दोनों सम्मिलित हैं। वाल्मीकि कहते हैं- राम के कंधे चौंडे और उठे हुए हैं। हाथ घुटनों तक लंबे, गले की हड्डी मांस से दबी हुई, गर्दन शंख की तरह, सिर उत्तम ललाट चौड़ा और आंखें बड़ी बड़ी, रंग चमकीला, सब अंग बराबर बंटे हुए हैं।वाल्मीकि के प्रश्न के उत्तर में नारदजी ने गुणों की जो सूची बनाई है, उस पर राम ही खरे सिद्ध होते हैं। वाल्मीकिजी का कहना है राम नियतात्मा हैं, इंद्रियजित हैं। कर्म की शक्ति बड़ी-चढ़ी है। संग्राम में पीछे पैर नहीं रखते। नीति में चतुर, सुंदर भाषण करने वाले, स्वजनों का भार उठाने वाले, शस्त्र और शास्त्र में पारंगत, सदा हंसकर बोलते हैं। न्याय और अन्याय के संघर्ष में पीड़ित के पक्षधर रहते हैं, चारित्रिक सफलता से युक्त ऐसी महान विभूति युगांतर तक निर्बल के बल,राम के रूप में सदा अमर हैं। जब तक नदियों और पर्वतों का इस धरा पर अस्तित्व रहेगा, तब तक रामचरित की महिमा का गुणगान इस धरा पर होता रहेगा और तब तक महर्षि वाल्मीकि अमरत्व को प्राप्त रहेंगे। एवं इस पावन अवसर पर भगत बगरेले. किशनलाल नरवारे. अशोक. पार्षद कृष्ण कुमार पंथ. रविंद्र. आकाश. आदि भक्तगण मौजूद रहे ।
रिपोर्टर सुरेंद्र सपेरा

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